Friday, July 30, 2010
अमौसा का मेला
आज कुछ हिंदी ब्लोग्स पढ़ते पढ़ते हमारी नजर इस कविता पर पड़ी (http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2010/04/blog-post_12.html) जिसने हमारे बचपन की मकर संक्रांति वाले मेले की याद ताजा कर दी ...
अमौसा का मेला : सुनिए एक मेले की कहानी स्व. कवि कैलाश गौतम की जुबानी !
भारत की ग्रामीण और कस्बाई संस्कृति में मेलों का एक प्रमुख स्थान है। और अगर वो मेला कुंभ जैसे मेले सा वृहद हो तो फिर उसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
इस रचना की भाषा यूँ तो भोजपुरी है पर ये वो भोजपुरी नहीं जो भोजपुर इलाके (आरा बलिया छपरा के सटे इलाके) में बोली जाती है। दरअसल बनारस से इलाहाबाद की ओर बढ़ने से भोजपुरी बोलने के तरीके और कुछ शब्दों में बदलाव आ जाता है पर जो भोजपुरी की मिठास है वो वैसे ही बनी रहती है। तो आइए इस मिठास को महसूस करें कैलाश जी की आवाज़ में इस हँसाती गुदगुदाती कविता में
कि भक्ति के रंग में रंगल गाँव देखा
धरम में करम में सनल गाँव देखा
अगल में बगल में सगल गाँव देखा
अमौसा नहाये चलल गाँव देखा
एहू हाथे झोरा, ओहू हाथे झोरा
अ कान्ही पे बोरी, कपारे पे बोरा
अ कमरी में केहू, रजाई में केहू
अ कथरी में केहू, दुलाई में केहू
कि आजी रंगावत हईं गोड़ देखा
हँसत हउवैं बब्बा तनी जोड़ देखा
घुँघुटवै से पूछै पतोहिया कि अइया
गठरिया में अब का रखाई बतइहा
एहर हउवै लुग्गा ओहर हउवै पूड़ी
रमायन के लग्गे हौ मड़ुआ के ढूँढ़ी
ऊ चाउर अ चिउरा किनारे के ओरी
अ नयका चपलवा अचारे के ओरी
अमौसा का मेला अमौसा का मेला...
मचल हउवै हल्ला चढ़ावा उतारा
खचाखच भरल रेलगाड़ी निहारा
एहर गुर्री-गुर्रा ओहर लोली-लोला
अ बिच्चे में हउवै सराफत से बोला
चपायल है केहू, दबायल है केहू
अ घंटन से उप्पर टँगायल है केहू
केहू हक्का-बक्का केहू लाल-पीयर
केहू फनफनात हउवै कीरा के नीयर
अ बप्पा रे बप्पा, अ दइया रे दइया
तनी हम्मैं आगे बढ़ै दे त भइया
मगर केहू दर से टसकले न टसकै
टसकले न टसकै, मसकले न मसकै
छिड़ल हौ हिताई नताई के चरचा
पढ़ाई लिखाई कमाई के चरचा
दरोगा के बदली करावत हौ केहू
अ लग्गी से पानी पियावत हौ केहू
अमौसा का मेला अमौसा का मेला...
जेहर देखा ओहरैं बढ़त हउवै मेला
अ सरगे के सीढ़ी चढ़त हउवै मेला
बड़ी हउवै साँसत न कहले कहाला
मूड़ैमूड़ सगरों न गिनले गिनाला
एही भीड़ में संत गिरहस्त देखा
सबै अपने अपने में हौ ब्यस्त देखा
अ टाई में केहू, टोपी में केहू
अ झूँसी में केहू, अलोपी में केहू
अखाड़न के संगत अ रंगत ई देखा
बिछल हौ हजारन के पंगत ई देखा
कहीं रासलीला कहीं परबचन हौ
कहीं गोष्ठी हौ कहीं पर भजन हौ
केहू बुढ़िया माई के कोरा उठावै
अ तिरबेनी मइया में गोता लगावै
कलपबास में घर क चिन्ता लगल हौ
कटल धान खरिहाने वइसै परल हौ
अमौसा का मेला अमौसा का मेला...
गुलब्बन के दुलहिन चलैं धीरे-धीरे
भरल नाव जइसे नदी तीरे-तीरे
सजल देह जइसे हो गौने का डोली
हँसी हौ बताशा शहद हउवै बोली
अ देखेलीं ठोकर बचावैलीं धक्का
मनै मन छोहारा मनै मन मुनक्का
फुटेहरा नियर मुस्किया-मुस्किया के
निहारे लैं मेला सिहा के चिहा के
सबै देवी देवता मनावत चलैंलीं
अ नरियर पे नरियर चढ़ावत चलैलीं
किनारे से देखैं इशारे से बोलैं
कहीं गांठ जोड़ैं कहीं गांठ खोलैं
बड़े मन से मन्दिर में दरसन करैलीं
अ दूधे से शिवजी क अरघा भरैलीं
चढ़ावैं चढ़ावा अ गोठैं शिवाला
छुवल चाहे पिन्डी लटक नाहीं जाला
अमौसा का मेला अमौसा का मेला...
एही में चम्पा चमेली भेटइलीं
अ बचपन के दूनो सहेली भेंटइलीं
ई आपन सुनावैं ऊ आपन सुनावैं
दूनों आपन गहना गदेला गिनावैं
असो का बनवलू असो का गढ़वलू
तू जीजा के फोटो न अब तक पठवलू
न ई उन्हैं रोकैं न ऊ इन्हैं टोकैं
दूनौ अपने दुलहा क तारीफ झोकैं
हमैं अपनी सासू के पुतरी तू जान्या
अ हम्मैं ससुर जी के पगरी तू जान्या
शहरियों में पक्की देहतियो में पक्की
चलत हउवै टेम्पो चलत हउवै चक्की
मनैमन जरै अ गड़ै लगलीं दूनों
भयल तू-तू मैं-मैं लड़ै लगली दूनों
अ साधू छोड़ावैं सिपाही छोड़ावै
अ हलुवाई जइसे कराही छोड़ावैं
अमौसा का मेला अमौसा का मेला...
कलौता के माई का झोरा हेरायल
अ बुद्धू का बड़का कटोरा हेरायल
टिकुलिया को माई टिकुलिया के जो है
बिजुलिया को माई बिजुलिया के जो है
मचल हउवै मेला में सगरो ढुंढाई
चमेला का बाबू चमेला का माई
गुलबिया सभत्तर निहारत चलैले
मुरहुवा मुरहुवा पुकारत चलैले
अ छोटकी बिटिउवा के मारत चलैले
बिटिउवै पर गुस्सा उतारत चलैले
गोबरधन के सरहज किनारे भेंटइलीं
गोबरधन के संगे पउँड़ के नहइलीं
घरे चल ता पाहुन दही-गुड़ खियाइत
भतीजा भयल हौ भतीजा देखाइत
उहैं फेंक गठरी परइलैं गोबरधन
न फिर-फिर देखइलैं धरइलैं गोबरधन
अमौसा का मेला अमौसा का मेला...
केहू शाल सुइटर दुशाला मोलावै
केहू बस अटैची के ताला मोलावै
केहू चायदानी पियाला मोलावै
सोठउरा के केहू मसाला मोलावै
नुमाइस में जातैं बदल गइलीं भउजी
अ भइया से आगे निकल गइलीं भउजी
आयल हिंडोला मचल गइलीं भउजी
अ देखतै डरामा उछल गइलीं भउजी
अ भइया बेचारू जोड़त हउवैं खरचा
भुलइले न भूलै पकौड़ी के मरचा
बिहाने कचहरी कचहरी के चिन्ता
बहिनिया का गौना मसहरी का चिन्ता
फटल हउवै कुरता फटल हउवै जूता
खलित्ता में खाली केराया के बूता
तबौ पीछे-पीछे चलत जात हउवन
गदेरी में सुरती मलत जात हउवन
अमौसा का मेला अमौसा का मेला...
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2 comments:
this is 5th time I tried reading it but somewhere in middle as usual I lost track...
DK,
Isko padho mat..suno..aur maja aayega..link upar mein hai..
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