Saturday, November 28, 2009

||सत्यम शिवम् सुन्दरम ||


आज विचार हुआ कि हम हिंदी में लिखें. फिर सोचता हूँ क्या लिखूं ? सप्ताहांत पे ही थोडा समय मिलता है कुछ लिखने का , परन्तु दफ्तर की व्यस्तता के कारण आजकल समय थोडा कम मिलता है |
पिछले सप्ताहांत मैं उज्जैन गया हुआ था और महाकाल के दर्शन किये | महाकाल शिवलिंग कि विशेषता ये है कि यहाँ प्रातः काल ब्रह्म मुहुर्त में भगवान की भस्म आरती कि जाती है |ये भस्म एक जलती चिता से चंडाल द्वारा लाया जाता है | कहा जाता है कि जब आप किसी ऐसे इंसान से मिलें या फिर ऐसी घटना का हिस्सा हों जहाँ आप खुद को असहज महसूस
करें , तो जान लीजिये कि ये आपके मानसिक सीमाओं का विस्तार है | महाकाल कि भस्म आरती भी हमारे लिए एक ऐसा ही मौका था |

हमारे समाज में लाश और चिता अत्यंत अपवित्र माने जाते हैं | किसी के मरने के बाद ११ दिन का कर्मकांड होता है पुनः पवित्र होने के लिए| लेकिन यहाँ हिन्दू धर्मं के सबसे बड़े देवता (यहाँ में राम और शिव के बीच कोई तुलना नहीं कर रहा ,मैं दोनों को ही बड़ा मानता हूँ ) शिव ,जिनके नाम का शाब्दिक मतलब भी कल्याण होता है (और कहा भी गया है 'सत्यम शिवम् सुन्दरम ') को चिता भस्म का श्रृंगार किया जाता है | विडम्बना ये रही की भगवान के दरबार में भी जाने के लिए हमें रिश्वत का सहारा लेना पड़ा | बात ये थी की भस्म आरती में बहुत भीड़ होने के कारण सरकार एक दिन पहले ही पास देती है , और सिर्फ पास वाले लोग ही भस्म आरती देख सकते हैं | चूँकि हम उज्जैन शाम को पहुंचे ,हमें ये पास एक दुसरे आदमी से खरीदना पड़ा और इस निःशुल्क पास के लिए हमने दिए ५०० रूपये |अंतत: हम खुश ही थे की इतनी दूर से आने के बाद , भस्म आरती देख पाएंगे. भस्म आरती सुबह ४ बजे प्रारंभ होती है , शिवलिंग पे जल चढाने के बाद हम मंदिर के गर्भगृह के बाहर प्रांगन में बैठे जहाँ बाकि पासधारी बैठे हुए थे |अभी भी मेरे मन में या उत्कंठा बनी हुई थी की भस्म चढ़ने के बाद भी शिवलिंग क्या उतना ही पवित्र माना जायेगा या फिर से उसे नहलाया जायेगा पवित्र करने के लिए. क्या भस्म राजित शिवलिंग को छूने के बाद मैं खुद अपवित्र नही हो जाऊंगा, क्या मुझे भस्म प्रसाद ग्रहण करना चाहिए ?

इस उधेड़बुन के बीच आरती प्रारंभ हुई , शिवलिंग का अभिषेक होने लगा , और मंत्रोच्चार के बीच थोड़ी देर में एक अधनंगा ,काला कलूटा इंसान जिसकी हालत ऐसी थी मनो अभी होली खेल के लौटा हो और होली भी कीचड वाली | पहचानते देर न लगी की ये शमशान से भस्म लेकर आया हुआ चंडाल है | और उसे सीधा मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश मिला, जो जगह अत्यंत पवित्र मानी जाती है ,वहां २४ पहर श्मशान में बिताने वाले एक चंडाल को प्रवेश !!! खैर, ये भोले बाबा की ख़ास बात है वहां तो भुत पिशाच ,देव,दानव सबको जगह मिलती है , सब एक सामान | शिवलिंग के श्रृंगार के बाद , एक पुजारी ने सारी महिलाओं को अपने चेहरे ढँक लेने को बोला क्यूंकि अब भस्म चढ़ने वाली थी और महिलाओं को ये दृश्य देखने को माना किया जाता है | क्यों? ये मुझे नहीं पता, शायद इसलिए की महिलाएं कोमल ह्रदय की होती हैं, उन्हें शमशान पे जाने से मना किया जाता है , इसलिए चिता भस्म चढ़ते देखने से भी माना किया जाता है | और अब वो कार्यक्रम प्रारंभ हुआ जिसके लिए हम इतनी दूर से आये थे, भस्म श्रृंगार | ये दृश्य कई मायनो में जीवन और मृत्यु को एक साथ दर्शाता है | जीवन की क्षणभंगुरता को दर्शाता है और मृत्यु के सौदर्य को भी इंगित करता है | शिव के कई रूप हैं , अर्धनारीश्वर , पंचमुखी इत्यादि लेकिन इस महाकाल रूप की विशेषता है की इसमें मृत्यु रूपी एकमात्र सत्य को प्रदर्शित किया गया है | मंत्रोच्चार के बीच ,शिवलिंग पे पड़ता भस्म ये एक ऐसा दृश्य है , जो कोई भी जल्दी नहीं भूल सकता | पुरे गर्भगृह में बस भस्म ही भस्म , मनो स्वयं यमराज नृत्य कर रहे हो महाकाल को रिझाने के लिए | थोड़ी देर में ही वो शिवलिंग पे पद रही राख उड़ कर हमारे तक भी पहुँच गयी , समझ में नहीं रहा था की चिता की राख के संसर्ग में आने के बाद , क्या हम भी अपवित्र हो गए ? फिर खुद में ही ये विचार आया की पवित्रता, अपवित्रता तो शिव से ही निकली हैं , न हम शिव को मानते न खुद की पवित्रता या अपवित्रता का ख्याल मन में आता | और जब ये राख स्वयं शिव से ही निकली है तो फिर क्या सोचना , क्यूंकि शिव से जुडी हर चीज को हम पवित्र ही मानते हैं |

यूँ थोड़ी देर के अन्तः द्वन्द के बाद मन के अन्दर की एक दुर्बलता दूर हुई | पवित्रता या अपवित्रता तो हमारे विचारों की होती है ,निर्जीव पदार्थों की नहीं | वैसे भी हमारे ग्रंथों ने इस सत्य को बार बार कहा है की , हमारा शारीर पंच तत्वों का बना हुआ है और मृत्यु के बाद ये उन्ही पंच तत्वों में विलीन हो जाता है |
उज्जैन यात्रा के बाद मैंने इस कथन को सच पाया की जहाँ आप खुद को असहज पाते हैं , वहां आपके मानसिक विस्तार की तयारी है ऐसा मानिये |

Tuesday, November 3, 2009

Amidst the Nature and Closer with God

This weekend I undertook a trip to a few beautiful places around pune. These places assume additional significance for me as they provided an ideal blend of spirituality with nature. The places I am talking about are Triambakeshwar and Bheemashankar . These two belong to the most revered dwadash jyotirlinga(the 12 most auspicious Shivlings on the planet).

Here are a few pics that I took at these spots. However, I must add that these pics fall way short of depicting the woooooowwww effect when one sees the picturesque valleys at these places.



------A Beautiful Confluence of Mountains,water and Greenery-------



--------------------------Isn't It Beautiful--------------------









------ Triambakeshwar : Adya(The First) Jyotirlinga------




-------------------- I am in love with this place------------------




-------- Bheemashankar Temple : Amidst a wildlife Sactuary---------