Sunday, May 30, 2010

। आज फ़िर से उनकी याद आई है ।


Was browsing through my old files from college and then stumbled upon this poem of mine. Somehow, it went unnoticed without torturing you on this blog :) . So here it is :


आज फ़िर से उनकी याद आई है,
हृदय सरोवर के शांत जल में
पुनः कुछ हिलोरें उठ आईं हैं,
ये अंधेरा ये एकांत,
दोस्त से थे हो चले,
सहसा फिर से किसी ने
एक चिनगारी सी जलायी है
आज फ़िर से उनकी याद आई है ।

वो बातें उनकी,वो हँसी प्यारी
वो मीठी मुस्कान,वो नैन मतवारी
ज्युँ तपते जेठ के बाद फिर
सावन की बदरी छायी है,
आज फ़िर से उनकी याद आई है ।

यादों के बादल हैं और आँसुओं की बारिश
क्यों आ रहे फिर याद वो
क्यों धडकने फिर तेज हैं
साँसें फिर क्यों गरमाईं हैं
टुटे सपनों के इस बियावान में
साथी तो बस एक रुस्वाइ है
आज फ़िर से उनकी याद आई है ।

1 comment:

Amit Anand said...

Bahut bikhra bahut toota,thapede sah nahi paaya,Hawaon ke isharon par
magar mai bah nahi paaya;Adhoora-ansuna hi rah gaya ye pyar ka
kissa,kabhi tum sun nahi paayi,kabhi mai kah nahi paaya !!