Wednesday, February 6, 2008

Celebrations of Nature



अजीब सा जादु है,
सुखे पत्तों कि खडखडाह्ट में,
सुबह कि किरणों में,
अंधेरे की आहट में,
घुमडते-गरजते-बरसते मेघों में,
मदमस्त से नाचते वन मयुरों में,
नवयुवान इन कलियों में,
बच्चों कि अठखेलियों में
अजीब सा जादु है ।

बारिश की बुँदों में,
वन विचरते मृग-वृंदों में,
सौंधी माटी की महक में,
पक्षियों के नयनाभिराम चहक में,
हिमगिरी के धवल शिखरों में,
सागर के शांत कोलाहल में,
गंग की तरंग में,
बसंत की उमंग में,
अजीब सा जादु है ।

पुरब के संदल पवन में,
सितारों से आच्छादित,
चाँद से आलोकित
पुर्णिमा के इस गगन में,
कार्तिक के शीतल भोर में,
फ़ागुन कि मस्ती में,
गाँव की उस बस्ती में,
अजीब सा जादु है ।



पंकदल में पडे जल-मोतियों में,
गहरे समंदर में पलते सीपियों में,
नवयौवन की अंगडाइयाँ लेती युवतीयों में,
पराग ढुंढती इन तितलियों में,
ग़ोधुली की उस साँझ में,
अरुणशिखा की बाँग में,
कोयल की आवाज में,
नदियों के कलकल नाद में,
मांझी के गीत में,
सवेरे की उस सीत में,
अजीब सा जादु है ।

जादु है,सौंदर्य है,एक नशा है प्रकृति
आत्मिक सुख है,अतुल्य शांति है प्रकृति
रुग्णों की औषध,जीने की शक्ति है प्रकृति
निराशों कि आशा,एक सच्ची अनुभूति है प्रकृति ।

The poem is meant to celebrate the eternal beauty of nature...

1 comment:

Sidharth said...

jaadu to hai he...
That is why there is a quest to understand nature. And till now no one is able to do that..
nice poem by the way..:)