हे स्वप्न सुंदरी तेरी तलाश में कहाँ खो गया हूँ मैं।
इस संसार के उपवन में हजार तितलियाँ, हजारों भ्रमर
पर उस तितली को देखकर क्यों मचल गया हूँ मैं,
कोइ पूछे विधाता की उस सुंदरतम रचना से,
जेठ की इस भरी दुपहरी में ठंढी आह क्यों भर रहा हूँ मैं।
पतझड़ में सावन,दिवाली में होली और दिन में रात
के गीत क्यों गा रहा हूँ मैं। हे स्वप्न सुंदरी……
अचानक से मेरा मन-मयूर मचल उठा है क्यों,
ऐ हसीना तेरे इन लहराते बालों पे,
चलते तो सब लोग हैं,पर क्यों जी करता है,
मर जाने को तेरी इन मतवाली चालों पे।
क्यों तेरी इस मादक खुशबू से
खुद को मतवाला बना रहा हूँ मैं। हे स्वप्न सुंदरी……
फ़कीर था पहले अब तेरा दिवाना हो गया हूँ,
जो कभी ना बुझे उस शमाँ का परवाना हो गया हूँ,
तुमसे मिला नही कभी पर तेरी याद में
पागल सा हो रहा हूँ, कवि नहीं हूँ,
पर कविता लिख रहा हूँ मैं।हे स्वप्न सुंदरी……
4 comments:
atchi kavita hai...
Kahan se udaayi??
us swapnsundari ka naam to batao yaar
kahin se nai udai dost...khud ki creation hai...aur koi nai hai yaar...bas baba(economics) ki class mein likha tha ek baar :-)
sry dear ... i was late on this topic .. but it was a superb cretaion ... keep going man... [:)]
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